
: झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा में पलामू और गढ़वा के युवाओं को नागपुरी और कुडुख में परीक्षा देनी होगी. पलामू और गढ़वा में भोजपुरी और मगही बोली और लिखी जाती है. कुडुख और नागपुरी इलाके में बहुत कम बोली और लिखी जाती है.


पलामू और गढ़वा इलाके में अनुसूचित जनजातियों की आबादी बहुत कम है. 2011 की जनगणना के अनुसार पलामू जिले में 9.34 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजातियों की है. पलामू इलाके में कुडुख और नागपुरी की पढ़ाई भी नहीं होती है. नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय के जीएलए कॉलेज में भी कुडुख भाषा का विभाग है, लेकिन वहां कोई शिक्षक नहीं है. प्रोफेसर कैलाश उरांव के सेवानिवृत्त होने के बाद कॉलेज में शिक्षक का पद खाली है.
पलामू के 33 फीसदी लोग मगही, 13 फीसदी भोजपुरी जबकि करीब 12 फीसदी लोग नागपुरी बोलते हैं. झारखंड गठन के बाद से ही पलामू इलाके में स्थानीय भाषा को लेकर विवाद चल रहा है. भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में राज्य के नियुक्ति नियमावली में 11 और 13 जिलों में अलग-अलग व्यवस्था लागू की गई थी. बाद में भी पलामू और गढ़वा के इलाकों में भोजपुरी, मगही या हिंदी को स्थानीय भाषा के रूप में स्थान नहीं दिया गया. उस दौरान पलामू इलाके में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ था.